Thursday, September 29, 2016

इश्क़

इश्क़


बड़े दिनों के बाद आज कलम उठा रहा हूँ,
कागज़ पे जमी धूल को साँसों से उड़ा रहा हूँ,
बड़े दिनों के बाद आज कलम उठा रहा हूँ।

मुझे याद है वो मंज़र आज भी,
नज़रों में रमां शब का नशा और चेहरे पे खिलती कलियों-सी ताज़गी,
मुझे याद है वो मंज़र आज भी।
हज़ारों दिलों को घायल करे उनका जलवा-ऐ-हुस्न,
पर हमें तो मार गयी उनकी सादगी,
मुझे याद है वो मंज़र आज भी।
ज़ुल्फों से चेहरा यूँ ढका हुआ,
जैसे बादलों का चाँद पे पर्दा हुआ,
गालों की रौनक महकशी,
पलकों को चूमती चाँदनी का इस दिल पे ऐसा पहरा हुआ,
के यादों में कहीं वो लम्हा आज भी है ठहरा हुआ,
उस पल को थाम लिया, बस उनका नाम लिया,
और उसी तसव्वुर में आज तक जिए जा रहा हूँ,
बड़े दिनों के बाद आज कलम उठा रहा हूँ।

बस फिर, दिल के अरमान बलखा गए,
उलफत के मौसम छा गए,
आँखों से यूँ बातें कहीं के लव्ज़ भी शरमा गए,
और हाये! उनकी कातिल अदा जो इस सितम पे मुस्कुरा गए,
ज़िंदगी यूँ खुशनुमा हुई,
जैसे दो जहाँ की ख़ुदाई महरबाँ हुई,
और फिर, एक दिन ऐसा भी आया,
जब हमसे दामन छुड़ा गए,
नज़रों से इस बार कुछ ऐसा कहा,
के चेहरा तो हँसता रहा पर इस दिल को रुला गए,
इश्क़ की वो आग लगी के आज तक बुझा रहा हूँ,
बड़े दिनों के बाद आज कलम उठा रहा हूँ।

आँखों में फर्श समेटे हुए,
बाज़ूओं के बल लेटे हुए,
जहाँ तक भी अपनी निगाहें ले जा रहा हूँ,
इस अंजुमन के कण-कण में बिखरी यादें ही पा रहा हूँ,
आँखों के आँसू तो कब के खत्म हो गए, अब तो आसूओं के रूएँ बहा रहा हूँ,
पर ज़िंदगी तो जीनी ही है इसीलिए उनके अनमोल खत बेच कर कोड़ियाँ कमा रहा हूँ,

बड़े दिनों के बाद आज कलम उठा रहा हूँ।

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