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कुछ लव्ज़ किताबों की कटोरी में डाल रखे हैं,
कुछ पेश होने हैं, कुछ अर्ज़ करके चखे हैं,
कुछ लबों की मुँडेरों पे कोनियाँ टेक
के लटके हैं,
कुछ आँखों से बयान हैं तो कुछ ज़बान में
दुबके हैं,
पर बात जनाब तो करनी ही है तो कहने से
क्यों डरते हैं,
हम हर मुनासिफ़ सुखंवर की शायारी का सजदा करते हैं।
कुछ लव्ज़ किताबों की...
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