Thursday, September 29, 2016

ज़ख्म

ज़ख्म


यहाँ लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए,
और हम जीतें हैं ज़िंदगी महकशी के लिए,
यहाँ क्यों लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए?

लोग कहते हैं के दबे ज़ख़्मों को ना कुरेदो,
और हम दिल पे ज़ख़्मों की राख़ रखते हैं ताज़गी के लिए,
यहाँ क्यों लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए?

अभी तो सिर्फ़ तेरी नज़रों की पहली झलक पे फिदा हुए हैं,
और अभी से तरस रहे हैं लव्ज़ों को इन आँखों की शायरी के लिए,
यहाँ क्यों लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए?

अभी तो ग़म-ऐ-जुदाई में आँखें सिर्फ़ नम हुई हैं,
और यहाँ अश्कों से गाल छिल गयें हैं ज़माने के लिए,
यहाँ क्यों लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए?

भूलने को तो हम तुम्हें भूल जाएँ,
पर कैसे न याद रखें, ये बात भूल जाने के लिए,

यहाँ क्यों लोग परेशान हैं ज़िंदगी के लिए?

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