Thursday, September 29, 2016

एक देश हुआ करता था कभी...


एक देश हुआ करता था कभी भारतवर्ष उसका नाम था,
सोने की चिड़िया कहते थे उसे, सारे जग में उसका आह्वान था,
हर क्षेत्र में वो उत्तीर्ण था, सभ्यता में महामहीम था,
पर इस सब में वो भूल गया के वो स्वयं में कितना आलीन था,
अपनी विविधता पे उसको गर्व था, एकता का वो संदर्भ था,
पर इस गर्व के गर्भ में पल रहा अहंकार का मर्ज़ था,
वो परेशानियों को टालता रहा, पर्दा बुराईयों पे डालता रहा,
दोस्त समझ के दुश्मनों को आस्तीन में पालता रहा,
और फिर जब राजा से वो ग़ुलाम बना तो भौचक्का रह गया,
सर पे ताज की जगह जब हाथों में बेड़ियाँ डलीं तो हक्का-बक्का रह गया,
अपनी गलतियों को समझने में उसे सौ साल लग गए,
एक-जुट हो के लड़ने में उसे सौ साल लग गए,
और ये संघर्ष आज तक जारी है
ये संघर्ष आज तक जारी है,
आज भी देश में भ्रष्टाचार और अनपढ़ता की बीमारी हैं,
गरीबी और असमानता से अब भी देश ग्रस्त है,
हम सबकी कायरता के कारण आज पूरा देश ध्वस्त है,
ना तेरी ना मेरी, ये हमारी ज़िम्मेदारी है,
इतना तो हर देश-वासी अपनी मात्र-भूमि का आभारी है,  
के लड़े वो मुश्किलों से साथ मिलके,
के बढ़े वो अग्निपथ पे साथ मिलके,
चाहे हज़ारों बार ठोकर खा कर गिरे,
पर फिर से हिम्मत जुटा के, चढ़े ये पहाड़ वो साथ मिलके,
गर ऐसा हुआ तो एक दिन ज़रूर ऐसा आएगा,
जब फिर से ये देश, सूरज जितना तेजस्वी और चाँद जितना सुंदर कह लाएगा,
वो जो देश होगा उसका सारे जग में गुण-गान होगा,
वो जो देश होगा, भारतवर्ष, उसका नाम होगा ।




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