Thursday, September 29, 2016

बिल्डर से बातचीत

एक बिल्डर से मिलने गए थे आज मैं और मेरी पत्नी, 
पूछना था क्या बादलों पे घर बनाते हो, 
ठहरे बादलों की नींव रखते हो या तैरते बादलों पे इमारते उगाते हो, 
उसने कहा बादलों का आज कल कोई भरोसा नहीं, वो हवा के जैसे आवारा हो गए हैं, 
कोई ज़माना था जब वो धीरे चलते थे अब ब्रह्मपुत्र की धारा हो गए हैं, 
जे.सी.बी में बादल, पत्थर और ओज़ोन घोलो, उसमें कार्बन और नाइट्रोजन मिलाओ, 
और जमे पानी की नींव पे ऊंची ऊंची बिल्डिंगें बनाओ, 
मैंने कहा प्रक्रिया नहीं, ये बताओ कौनसी मंज़िल का घर खाली है, 
कब तक कमप्लीशन होगा, कब की मूव-इन की तैयारी है, 
कहता अभी तो बस सबसे ऊपर का फ्लैट ही बचा है, 
अन्तरिक्ष बगल में है ना, इसीलिए कोई ना उसे लेता है, 
पत्नी ने कहा बड़े साहिब, अन्तरिक्ष बगल में है ये तो बहुत अच्छी बात है, 
दिन भर धूप सेकेंगे फिर रात, तारों को निकट से देखेंगे, 
बिल्डर भड़क उठा, कहा मैडम असल तो आपको पता नहीं, 
पुच्छलतारे का लगता है आपने कभी कूड़ा साफ किया नहीं, 
अन्तरिक्ष के पास घर लोगे तो दिन में भभकती गर्मी और रात को थड़थड़ाती सर्दी होगी, 
बादल उबाल उबाल पानी पीना पड़ेगा, 
और आपके लिए रोज़-दर-रोज़ हवा का इंतजाम कौन करेगा, 
मैंने कहा, शांत भ्राता, वो बात आपकी सही है, 
पर अन्तरिक्ष जैसे मोबाइल सिग्नल कहीं आते नहीं है, 
सोचो इंटरनेट की क्या ज़बरदस्त स्पीड होगी, 
वौटसएप, फेस्बूक तो दौड़ेगा, 
स्काईप पक्का क्रैश होगा और मूवीस पलों में डाउनलोड होंगी । 
बिल्डर ने शांत स्वभाव में फिर कहा के अन्तरिक्ष के इतने पास होने के बावजूद अगर आप चाँद नहीं मोबाइल देखोगे, 
तो ये फ्लैट आपके लिए नहीं है, फिर ना पूछना कब बेचोगे ।

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