रंगीन पानी उबल के बादलों में भर गया,
सफ़ेद
आसमान को वो बहरंगी कर गया,
तारों की
रोशनी में भी उसने भांग भर दी,
सीधी-साधी
किरण लड़खडाती, टिमटिमाती कर दी,
पूरब का
ये वातावरण जब कल यहाँ पश्चिम आएगा,
तो घर से
दूर हम परदेसियों को देश का स्वाद चाखायेगा,
तब याद
आएगी हम सभी को एक संत-महात्मा की कही खरी बोली,
इजाज़त हो
तो दोहराऊँ, "होली कब है, कब है होली?"
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