Thursday, September 29, 2016

काश


काश मैं कल होता,
कम-से-कम, इस दुनिया के पापों से तो निश्छल होता,
काश मैं कल होता।

अगर कहीं आग लगती तो काश मैं जल होता,
इस दुनिया से पापों को मिटाने का काश मुझमें बल होता,
काश मैं कल होता।

आज-कल तो चारों तरफ है बुराई,
नहीं है कहीं सच्चाई का नामो-निशान,
लकीन फिर भी रहेगी यही जुस्तजु मेरी,
कि ये दुनिया बन जाए, एक सुंदर जहाँ।
काश मैं कल होता...




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