वो चले जब सीना तान के,
बिना डरे अंजाम से,
आँखों के सामने छाया अंधेरा,
जब दुश्मनों ने उन्हें था घेरा,
उस पल दिखी के तस्वीर सामने,
वो बढ़े उसको थामने,
वो माँ के पाँव थे जो थी उनकी आखरी मंज़िल,
उनके साँसों की खुशबू से आज भी महके है कारगिल।
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