Thursday, September 29, 2016

शहर

शहर


हर शाम महकशी में डूबती है ये ज़िंदगी,
हर रात प्यालों को चूमती है ये बेबसी,
जिस ओस से हर शाम रंगीनियत में सँवरती है,
वही ओस हर रात को आँसू बन कर इन पलकों पर उभरती है,
भीमीभीमी-सी खुशबू है इस मद्धम-सी चाँदनी की,
ऐसे मौसम में ही तो ये दिल धड़कता है,
किसी को मिलने के लिए जब ये तड़पता है,
तब उस तड़प की, दर्द-ऐ-दिल की कोई दावा नहीं होती,
और ऐसे मौके पे बेवफ़ाई से बड़ी कोई सज़ा नहीं होती,
जाने कितनों की ख्वाइशों की लाशें ये अपने सीने पे ढो रहा है,
फिर भी, अजब है ये शहर, जहाँ इश्क़ हो रहा है।

ख्वाबों से महकी हुई इस शब पे जैसे चाँदनी हो बिखर गयी,
पर ज़हन में आई जब उनकी याद तो वो आँखों में आसूँ भर गयी,
महफूस रखी थी यादों में जो, वो शाम भी आज ढल गयी,
उनकी परछाईयों का पीछा तो बहुत किया,
पर क्या करें ये किस्मत ही करवट बदल गयी।
उनके सजदे भी किए और उनके सदके भी गए,
पर उन्होंने ऐसा सदमा दिया के सदियों के रिश्ते बदल गए।
हाँ, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ज़िंदगी में आँसू पीते हैं,
पर हम जैसे कोई कहाँ जो आँसू पीने के लिए ही ज़िंदगी जीते हैं।
आज महफिल भी है बड़ी शायराँ और समा भी है बड़ा आशिकाँ,
दूर तक राहों में दिखते हैं आहों के कहकशां,
फिर क्यूँ नहीं दिखता है सपनों से सँजोया वो आशियाँ?
कहाँ खो गया वो आशियाँ?
वो आशियाँ कहाँ खो गया?
या लौटा दे वो आशियाँ या मुझे मौत दे दे ऐ ख़ुदा,
पर वो आशियाँ तो मिलने से रहा तो मुझे मौत दे दे ऐ ख़ुदा,
मैं और कुछ नहीं माँगता,
बस आखरी ख्वाइश ये होगी,
के बाहों में उनकी ये सर रख के करूँ इस ज़िंदगी को विदा,
मुझे मौत दे दे ऐ ख़ुदा, मैं और कुछ नहीं मांगता।
इस शहर के हर महखाने में, एक आशिक़ रो रहा है,

फिर भी, अजब है ये शहर, जहाँ इश्क़ हो रहा है।

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