Thursday, September 29, 2016

सपने

·         सिले पलकों के धागों को उधेड़ के आँखों से कई सपने बाहर निकल गए,

जो थक गए वो रास्ते में ही थम गए, और जो बढ़ते रहे वो हकीक़त में बदल गए।

No comments:

Post a Comment