Chhota Bazaar
A blog from a self-diagnosed writer.
Thursday, September 29, 2016
सपने
·
सिले
पलकों
के धागों को उधेड़ के आँखों से कई सपने बाहर निकल गए
,
जो थक गए वो रास्ते में ही थम गए
,
और जो बढ़ते रहे वो
हकीक़त
में बदल गए।
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