ऐ माँ, अब तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ,
पर तेरे कर्ज़ का ये सिला मैं तुझे दिये जा रहा
हूँ,
के खून से अपने धो दिया है मैंने वो पथ,
जिस पर चले थे माँ तेरे दुश्मनों के रथ,
तेरे लिए मैं जान भी अपनी कुर्बान किए जा रहा
हूँ,
ऐ माँ, तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ।
अब और ना देखी जाए मुझसे ये जंग,
जो खेलती है ना सिर्फ औरतों के सुहागों के संग,
पर ये करती भी है कई बच्चों को अनाथ,
बिछुड़ जाता है उनसे उनके माँ-बाप का साथ,
ऐ ख़ुदा दे मोक्ष मुझे, ये ही उम्मीद लिए जा रहा हूँ,
ऐ माँ, तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ।
पर-दर-पल मैं महसूस कर रहा हूँ अब और भी तन्हा,
अब लेने जा रहा हूँ भगवान की पनाह,
आशा करता हूँ, हो ये मेरा जन्म आखरी,
इस मोह-जाल से मेरा अंत हो,
देख परछाईं काल की।
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